Wednesday, April 1, 2015

कौन

न बंधु न मित्र न सखा
फिर तुम हो कौन
बस एक मौन !
तुम क्या हो ?
जीवन का एक पड़ाव
एक भटका हुआ भाव
कुछ अनुत्तरित प्रश्न
कुछ स्नेहिल क्छण
एक अपरिभाषित
अभिव्यक्ति
एक मधुरिम प्रतिती
बन गया सब अतीत
हुआ सब गौण
न बंधु न मित्र न सखा
फिर तुम हो कौन
बस एक मौन!
ऐ अंजाने शुभचिंतक!

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